प्रतिस्पर्धा, आज-कल !


बहुत मेधावी छात्र था वो, लगभग हर प्रश्न का उत्तर था उसके पास, मान-सम्मान भी, खूब मिलता था। उसका मित्र, ठीक उलट, ना कुछ आता था, ना ही सीखने की कोई इच्छा, या प्रयास। आये दिन लानत-मलानत होती ही रहती, उसकी।

एक बार, उन्हीं दोनों के बीच, प्रतियोगिता का संयोग बना। परिणाम को लेकर, किसी को कोई सन्देह, था ही नहीं, मगर वो प्रतियोगिता में भाग ले ही क्यों ? साफ मना कर दिया, उसने। आयोजन ही, ध्वस्त होने के आसार बन गये तो, खातिर खुशामद होने लगी। वह राजी तो हो गया, मगर सशर्त !

शर्त ये कि, उसकी क्षमता तो, हर कोई जानता ही है, लड़ाई बराबर की नहीं, इसलिए हैण्डी-कैप मिले। इस तरह से, कि मेधावी की एक असफलता, उसकी पाँच असफलताओं के तुल्य मानी जाये। मेधावी, खुशी खुशी, राजी भी हो गया, और पहले सवाल को सज्ज भी।

"उस चिड़िया का नाम, जिसके दो पर, मगर चार पैर होते हों ?"

मेधावी ने बहुत प्रयास किया, मगर उत्तर मिला नहीं। हार मान ली। स्कोर 0-5 !

मेधावी ने, अपनी बारी आने पर यही सवाल किया, तो साथी बोला, "मुझे भी नहीं पता !" स्कोर 1-5 😂

यही हो रहा है, आजकल केवल सवाल पूछे जा रहे हैं, उत्तर, सवाल पूछने वालों के पास भी नहीं, बाध्यता भी नहीं स्कोर, उनके पक्ष में बढ़ता ही जा रहा है, मगर। उत्तर खोजने की कोशिश हो ही नहीं रही, कोई जरूरत भी नहीं। काम चल तो रहा है, शायद ज्यादा बढ़िया। हार-जीत से इतर, समय, और ऊर्जा, और संसाधन नष्ट हो रहा है, राष्ट्र का। मेधा हतोत्साहित हो रही है, हुआ करे !🙌

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THE QUEUE....