वार्तालाप !

वार्तालाप !
 
वो सड़क किनारे खड़ादिन शुरू करने के उपक्रम में थाकि "जन-प्रतिनिधि" आये और उसे "नि:शुल्क" सड़क पार कराने का प्रस्ताव किया। उसने विनम्रता से मना किया, तो वो अड़ गयेकहने लगे, "जीवन समर्पित किया हैजन सेवार्थअब तो वापसी असम्भव !"
 
उसने फिर कोशिश की, "सेवा ही ना मगर मुझे आवश्यकता ही नहीं है। जाइयेकिसी काम धन्धे में लगिये"
 
वे अडिग थे, "अब तो यहीध्येय बन चुका। आप ना सहीकोई ना कोई तोऔर आयेगा। और नहीं तोआप ही चले चलनावापस आते रहनाजबजैसे मन करे ?"
 
ये सेवाकिसी तरह नहीं है जनाबसारा खेल सेवा के बदले मिलने वाले टीए डीए का है। और एक बार टीए बिल बनाने का अवसर मिल भर जायेअपार सम्भावनाओं के द्वार खुल जाते हैं।
 
ये भी है कि सभी ऐसे नहींअपवाद भी हैंमगर गिनती के हैंऔर अपवादकभी नियम नहीं होते 😀


 

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