वो सड़क किनारे खड़ा, दिन शुरू करने के उपक्रम में था, कि "जन-प्रतिनिधि" आये और उसे "नि:शुल्क" सड़क पार कराने का प्रस्ताव किया। उसने विनम्रता से मना किया, तो वो अड़ गये, कहने लगे, "जीवन समर्पित किया है, जन सेवार्थ, अब तो वापसी ? असम्भव !"
उसने फिर कोशिश की, "सेवा ही ना ? मगर मुझे आवश्यकता ही नहीं है। जाइये, किसी काम धन्धे में लगिये"
वे अडिग थे, "अब तो यही, ध्येय बन चुका। आप ना सही, कोई ना कोई तो, और आयेगा। और नहीं तो, आप ही चले चलना, वापस आते रहना, जब, जैसे मन करे ?"
ये सेवा, किसी तरह नहीं है जनाब, सारा खेल सेवा के बदले मिलने वाले टीए डीए का है। और एक बार टीए बिल बनाने का अवसर मिल भर जाये, अपार सम्भावनाओं के द्वार खुल जाते हैं।
ये भी है कि सभी ऐसे नहीं, अपवाद भी हैं, मगर गिनती के हैं, और अपवाद, कभी नियम नहीं होते 😀
उसने फिर कोशिश की, "सेवा ही ना ? मगर मुझे आवश्यकता ही नहीं है। जाइये, किसी काम धन्धे में लगिये"
वे अडिग थे, "अब तो यही, ध्येय बन चुका। आप ना सही, कोई ना कोई तो, और आयेगा। और नहीं तो, आप ही चले चलना, वापस आते रहना, जब, जैसे मन करे ?"
ये सेवा, किसी तरह नहीं है जनाब, सारा खेल सेवा के बदले मिलने वाले टीए डीए का है। और एक बार टीए बिल बनाने का अवसर मिल भर जाये, अपार सम्भावनाओं के द्वार खुल जाते हैं।
ये भी है कि सभी ऐसे नहीं, अपवाद भी हैं, मगर गिनती के हैं, और अपवाद, कभी नियम नहीं होते 😀
No comments:
Post a Comment