लोकानुमोदन

"सर्वानुमोदन" एक आत्मघाती कामना है, इसलिए कि यह अस्थिर, स्वार्थ-प्रेरित और, लगभग असम्भव सी बात है। 

स्वार्थ, आवश्यकता के अनुसार निश्चित होते है, बदलते रहते हैं। व्यक्तिपरक होते हैं, इसलिए साझा हो ही नहीं सकते। जैसे चौपट स्टीयरिंग के कारण, झूमती चलती गाड़ी का पल-पल, सटीक अनुसरण। अपनी ही गाड़ी को, सही सलामत रख पाना, दूभर हो जायेगा।

स्व-अनुमोदन, या अन्तरात्मा की सहमति, अमूल्य भी, अनिवार्य भी, मगर !

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