बात, ऐसी थोड़ी ना थी !


गुप्ता जी, आज किसी पूजा आयोजन में, हाज़री लगाने भेजे गये थे। वैसे, ये उनका, कोई पसन्दीदा काम था नहीं, मगर पत्नी की नज़र में, वे किसी और काम के लायक थे भी नहीं, और पत्नी को खुद, ऑब्वीसियली दम मारने की भी फुर्सत, थी ही नहीं ?

ख़ैर, कम्प्लायन्स, बहुत सिनसियरली हुई, पूजा के बाद, आरती में भी, गुप्ता जी, ईमानदारी से मौजूद रहे, और हालाँकि उन्हें औचित्य लगता नहीं था, उन्होंने दस का साबुत नोट, थाली में भेंट चढ़ा ही दिया। खाँम-खां की टोका टाकी से बचने के लिए, सबसे नजरें बचा कर।

मगर होता कहाँ हैं, जो छुपाने की कोशिश करते हैं, सबसे पहले जग जाहिर, होता है। मिसेज़ शर्मा, चेहरे पर मुस्कान लिये, उन्हें ही देखे जा रही थीं। उन्होंने अपनी उँगलियों के बीच, दो हजार का, एक कड़क नोट भी, पकड़ा हुआ था।

गुप्ता जी को रीयलाइज़ तो हुआ, मगर बहुत देर से, कि आदमी को इतना सरल भी नहीं होना चाहिए, कि समझ ले कि मिसेज शर्मा, कदाचित अपना चढ़ावा, थाली तक पहुँचा नहीं पा रही हैं। उन्होनें वो नोट, उनसे लेकर, थाली में डाला ही नहीं, अपनी श्रद्धा का भी कर डाला, पुनर्मूल्यांकन। मात्र दस रुपये, उन्हें एकाएक शर्मनाक लगने लगे और ससमय सुधार के लिये, दो हजार का एक अतिरिक्त नोट, अपने पर्स से निकाल कर थाल को भेंट कर डाला।

अपनी कारगुजारी पर, उनका सगर्व संतोष, ज्यादा देर टिका नहीं। उनसे पहले ही, मिसेज शर्मा, मिसेज गुप्ता को अपडेट करके, निकल लीं थीं। उनकी सारी सफाई, तत्काल झाड़ू से, घर से बाहर फेंक दी गई,  

"हे महापुरुष, वो दो हजार का नोट, मिसेज शर्मा का नहीं, आप ही का था, जो दस का नोट निकालते वक्त, आपके ही पर्स से, नीचे गिर गया था। वे उसे, केवल आपके ही पर्स में, वापस रखवाना चाह रही थीं।"

बेचारे गुप्ता जी, घर से बाहर बैठे, खाने से पहले, मौसम शान्त होने का, इन्तजार कर रहे हैं 🤣

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