एक-
अभी जब सूरज, ठीक हमारे ऊपर रोशनी बरसा रहा है, अमरीका में, रात हो रही होगी, घटाटोप अँधेरा। और करीब बारह घंटे बाद, वहाँ रोशनी भरपूर होगी, यहाँ अँधेरा छाया होगा।
बोलें तो, दिन-रात, रौशनी-उजाला, सुख और दुख, आनी जानी बात। अदलती-बदलती रहती है, सब जगह, सबके साथ होती ही है, करीब-करीब एक जैसी। अपवाद कोनी।
दो-
अभी हम खड़े हैं, यहाँ, सीधे, सर ऊपर, पैर नीचे। अमरीका, गोल पृथ्वी की दूसरी तरफ है, तो वहाँ के लोग, हमसे उलट होंगे, यानी पैर ऊपर, सर नीचे। मगर वहाँ के हिसाब से, सीधे, बल्कि हम खुद, उल्टे दिख रहे होंगे।
बोलें तो, आप के सही होने के लिए, विपरीत का गलत ही होना, अनिवार्य नहीं। सब संदर्भों का खेल। हम एक ही समय, अलग-अलग होने के बावजूद, सब सही भी हो सकते हैं। साहचर्य के लिए, इतनी प्रज्ञा, बड़े काम की।
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