एक रहिन 'मोर' !


एक रहिन 
'मोर' !
 
जंगल में रहता थामस्त रहता था और जब मन होतानाचने लगता। दिल खोल के नाचता थापंखों को फैला-फैला कर। भरपेट भोजन हुआनाचने लगाआसमान पर बादल छायेनाचने लगामोरनी नगीच दिखीनाचने लगासैटिंग हो गईनाचने लगा।
 
खुशी का हिसाब-किताब नहींदेखने वालों से मतलब नहीं (मोरनी छोड़)। 
 
फिर उसका दुर्भाग्य हुआ कि किसी चतुर ने उसे देख लियाऔर उसमें संभावनायें देख लीं । उसने तारीफों के पुल बाँध दियेख्याति काप्रभुता का लोभ दिखायाऔर इतना समझा गया कि, "जंगल में मोर नाचाकिसने देखा ?"
 
प्रचार केप्रदर्शन के इन्तजाम हो गयेऔर सच में मोर के नृत्य के प्रशंसकदुनियाँ के कोने कोने में दिखने लगे। मोर अब नियमित नाचता थामगर अपने लिये नहींऑन डिमांडनृत्य मेंकुदरती मौलिकता जाती रहीखुशी केसंतोष केप्रेम के हेतुक समाप्त हुएउनकी जगह ले ली व्यावसायिक सोच विचार ने। ख्याति मिलीमगर खुशी जाती रही। सुख की चाबीअब उसके पास रहीनहीं थी।
 
कालान्तर में दुनियाँ ने कृत्रिम उपाय विकसित कर लियेफोटो खिंचने लगेफोटोशॉप होने लगेवीडियोस्पेशल इफैक्ट्सऐसे ऐसे कि मोर की भी जरूरत नहीं रहीऔर नृत्य कौशलजैसे चाहोजब चाहोइन्टरनेट आ गया तो वीडियो घर घर में वायरल होने लगे।
 
आज यही हो रहा हैप्रेजेंटेशन ऐसे कि यकीन ही ना होघर घरमोबाइल मोबाइलऔर मोरमोर का तो कोई पुरसा हाल ही नहींजंगल में ही किसी कोने में पड़ा पड़ा सिसक रहा हैकोस रहा है उस दिन कोजब लालच में आकरनैसर्गिक छोड़व्यावसायिक हुआ था।
 
पैकिंगप्रेजेंटेशनप्रचार... सब लाजवाबमगर बोतल वो तो खाली की खाली !

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