अब हवाएँ ही करेंगी, क़िस्मतों का यूँ फ़ैसला,
जिस दिए में तेल होगा, वह जला रह जायेगा।
ध्यान दें, महत्व तेल का है। अगर दिया, शरीर हुआ, तो लौ, जीवन, और तेल, प्राण तत्व, बोलें तो, सद्विचार, जीवन में उमंग और चाह, स्वस्थ अन्तरात्मा। भूमिका चिकित्सकों की ? संरक्षण की, जैसे हाथ, लौ को हवा से बचाने का प्रयास करते हैं, केवल। आन्तरिक संसाधनों का विकल्प, कतई नहीं, आपके सिवा, किसी के पास नहीं, दरअसल।
और फिर,
चिराग़ सबके बुझा करते हैं, कि हवा, सगी किसी की नहीं,
बात, फ़क़त, देर सवेर की !
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