गंगा-स्नान और गिलास !

महाकुंभ का पुनीत अवसर, कहा जाता है, 144 साल बाद आया है, ये। आम जीवन में, एक बार भी, आसान कोनी। स्वाभाविक है, उत्सुकता, उत्साह और कामना की सीमा नहीं, सारे कीर्तिमान ध्वस्त होते जा रहे हैं, ना भूतो, ना भविष्यति। इतने श्रद्धालु जन, कि अनेक देशों की मिली जुली जनसंख्या भी, बौनी लगे। व्यवस्था की अपनी समस्याएं भी होती हैं, अपनी चुनौतियाँ।

ऐसी परिस्थितियों में, परिवार-जनों का मन भी हो आया । मेरे लिए तो खैर, अंगूर खट्टे थे, मगर परिवार की इच्छायें पूरी करने के, सामर्थ्य भर, ईमानदार प्रयासों का फर्ज। विभागीय सम्पर्कों पर विचार होने लगा, और सुई जाकर, एक ही व्यक्ति पर, जा जाकर बार बार अटकने लगी, जिसने कोई तीन साल पहले, उत्तर-पुत्री-वैवाहिक गंगा-स्नान की स्मरणीय, बेहतरीन व्यवस्था की थी।

सम्पर्क हुआ तो उसने तत्काल, पहले तो प्रसन्नता व्यक्त की कि उसे याद किया गया, साथ-साथ परिस्थितियों में अन्तर बताते हुए, सम्भावित असुविधाओं और सीमाओं से भी अवगत कराया, अपनी ओर से समस्त प्रयासों के आश्वासन के साथ। करीब-करीब, यही प्रतिक्रिया अन्य तत्कालीन सम्पर्कों की थी।

खैर मन बहुत था, तो अनिश्चितताएं बनी रहीं, हम चले आए। गंगा मैय्या ने ही बुला लिया था तो अनेकानेक, अप्रत्याशित, सहजता और सुविधाएं भी मिलीं, और अन्ततः परम पवित्र, गंगा स्नान का पुण्य लाभ हुआ, आशातीत सहजता के साथ, नाम मात्र की, अपरिहार्य पद यात्रा के साथ।

अपने परिवारजन, साथ थे ही, कुछ आल्हादित, कि इतना कुछ प्राप्त हुआ, जितना सोचा भी नहीं था, ये लोग गिलास में भरा पानी देख रहे थे । कुछ लोग, पिछली बार से तुलना कर रहे थे, तब क्या कुछ हुआ था, और अब नहीं हो पाया, परिस्थितिजन्य अन्तर से इतर, ये गिलास कितना खाली रह गया, देखने वाले लोग।

अपुन ? मस्त, अहो-भाग्य ! कि खाली-भरे से परे, मेरे पास गिलास तो है, अभी भी, यानी इतने अपने लोग, आज भी स्नेह और आदर से ओतप्रोत, और आज, बोलें तो, सेवा-निवृत्ति के कोई सात आठ साल बाद भी। उस दौर में, जब पद छोड़ने के साथ ही, लोग मुँह फेर लिया करते हैं। क्या हुआ, जो व्यक्तिगत, साक्षात न हो सका, मेरा स्नान तो हो गया। मन चंगा, तो कटौती में... गंगा 🙏👐😀

अभिभूत 🙏

No comments:

THE QUEUE....