तमीज़ तहज़ीब की बात, घर-घर की बात !

 

प्रणाम 🙏

आज का विचार, साझा करूँ तो, हम सभी तो घरों में ही रहते हैं। छोटे घर, बड़े घर, शानदार घर, काम चलाऊ घर, पर सबके होते हैं, भले, सर पर छत की जगह, आसमान ही हो, पंछियों के, पशुओं के भी। घर का आशय, व्यापक अर्थों में, वह स्थान, भौतिक भी, मानसिक भी, जहाँ आप सहजतम अनुभव करें। केवल भौगोलिक पता भर, नहीं होता कोई घर।

घर में, स्वागत की जगह होती है, जहाँ आप, अतिथि को सबसे पहले लाना चाहते हैं, विश्राम की जगह होती है, रसोई होती है, आमोद-प्रमोद की जगह होती है, नित्य-कर्मों की जगह भी होती है।

और, नित्य-कर्मों की जगह, अनिवार्य होती है, हर घर में। समझौता, कहीं भी हो, यहाँ नहीं। और यह स्थान कम्पलसरी भी है, गोपनीय भी, मेजबान की अनुमति, लेनी तो चाहिए।

घर की तरह ही, व्यक्तित्व भी होता है, एक स्वागत द्वार, एक जगह सत्कार की, पार्टी की। रिफ्रैश रूम, परम आवश्यक, परन्तु मुँह उठाये, कभी भी, कहीं भी घुस जाने का नहीं, मेजबान से कहिए, प्रायः निश्चित पहले से होता है, व्यवस्था भी, मगर फिर भी।

सारी तमीज़-तहज़ीब, मेजबान के ही हिस्से में तो, नहीं ना आती। 😀

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