सभी सुधिजनों को, बसंत-पंचमी के पुण्य पर्व पर, सद्भावपूर्ण मंगलमय शुभकामनायें !
यह मान्यता भी, प्रासंगिक है कि बसंत पंचमी के दिन ही, माँ सरस्वती का जन्म भी हुआ था। इसीलिए, इस दिन को विद्या जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद, जब शांत वातावरण देखा, तो उन्होंने माँ सरस्वती को प्रकट किया। माँ सरस्वती ने अपनी वीणा से संसार को ध्वनि और वाणी दी।
तीर्थराज प्रयाग त्रिवेणी पर भी, माँ गंगा, माँ यमुना के साथ-साथ माँ सरस्वती भी, रही आती रही है। यहीं से त्रिवेणी नाम आता है। कोई कोई यह भी कहता है कि माँ सरस्वती, अब लुप्त हो गई हैं।
विश्वास यह भी है कि माँ गंगा से जीवन में शक्ति और ऊर्जा आती है तो माँ यमुना से, इनका नियन्त्रण। रजो गुण, तमो गुण और सतो गुण, माँ सरस्वती से। समझें, इंजन-एक्सीलेरेटर, गियर-ब्रेक और स्टीयरिंग सदृश:। नीर-क्षीर विवेक के सहारे, संतुलन की भूमिका, माँ सरस्वती की।
आज का समय, रजोगुण, तमोगुण की प्रधानता का है, विवेक की उपेक्षा का चलन है। उपेक्षित पक्ष, धीरे धीरे अप्रासंगिक हो कर, लुप्त हो ही जाता है, पता नहीं, माँ सरस्वती के विलुप्त होने में, यह विचार, कितना सटीक है ?
आज के विशेष पुनीत दिन, आइये, उत्सव तो मनायें ही, धूम-धाम से, बुद्धि विवेक की देवी, माँ सरस्वती का आव्हान, और पुनर्स्थापना के लिए भी, उत्सुक, जागृत और आतुर हों।
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